राम मंदिर पर निबंध (Essay on Ram Mandir in Hindi)
राम मंदिर यह हिंदू धर्म की सबसे बड़ी निशानियों में से एक है। यह राम मंदिर एक मंदिर नहीं बल्कि सभी भारतवासियों का एक अभिमान है।
यह राम मंदिर भारत का राज्य उत्तर प्रदेश मे स्थित अयोध्या में है। यह अयोध्या भगवान राम की जन्म भूमि है। जहा भगवान श्री राम का जन्म हुआ था।
इसलिए जहा भगवान श्री राम का जन्म हुआ था, वहा उनके जन्मभूमि पर मंदिर की स्थापना की गई थी। जो भगवान राम के जन्मभूमि की सबसे बड़ी निशानी है।

राम मंदिर पर हानि
राम मंदिर हम सभी भारतवासियों के लिए एक बहुत बड़ा सम्मान है और एक बहुत बड़ा पवित्र स्थान भी। जिसमे बसे भगवान श्री राम और माता सीता की भक्ति सभी भारतवासी करते है।
लेकिन जब अपने भारत देश में मुग़ल शासन शुरू हुआ था तब मुगलों के शासक बाबर ने अयोध्या पर आक्रमण करके यहा पर स्थित इसी पवित्र राम मंदिर को भारी हानि पोहोचाई।
उसने राम मंदिर को तोड़कर वहा बाबरी मस्जिद बनाई। जो सभी भारतवासियों का और भारत देश के संस्कृति का बहुत बड़ा अपमान था। जिससे अपने देश के लोगों को बहुत बड़ा झटका लगा।
राम मंदिर का आंदोलन
जबसे राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई। तबसे भारत देश के सभी लोगों ने मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए बहुत बड़ा संघर्ष किया। एक पवित्र स्थान को नुकसान पोहोचने और उसके जगह दूसरा मंदिर बनाने की वजह से भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तहत एक आंदोलन शुरू हुआ था।
ये आंदोलन बहुत ज्यादा लंबे समय तक चल रहा था। इसीलिए साल 6 दिसंबर 1992 को विवादित बाबरी मस्जिद का ढ़ाचा तोड़कर वहा एक आस्थायी मंदिर की स्थापना की थी।
राम मंदिर का संघर्ष
6 दिसंबर 1992 को एक अस्थायी राम मंदिर की स्थापना तो की थी। जिससे आंदोलन तो रुक गया लेकिन, इसी राम मंदिर का संघर्ष यहा तक नहीं चला बल्कि वो उसके आगे भी कई वर्षों तक चल रहा था।
ई.स 1528 को क्रूर मुगल शासक बाबर ने पवित्र राम मंदिर को तोड़कर वहा मस्जिद का निर्माण किया था। उसके बाद इसी जगह को लेकर ई.स 1853 को हिंदू और मुस्लिम इन दो धर्म के लोगों के बीच पहली बार विवाद का आरंभ हुआ था।
इसके बाद कई सालों तक राम मंदिर का यह संघर्ष चलता रहा। तब 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया था। इसलिए हिंदू और मुस्लिम इन दो धर्मों के लोगों में बहुत बड़े दंगे हुए। इस संघर्ष में चल रहे दंगों में कई लोगों को अपने प्राण भी गवाने पड़े थे।
हिंदू-मुस्लिम हिस्सा
हिंदू और मुस्लिम लोगों में इस जमीन को लेकर बहुत विवाद चल रहे थे। इसीलिए साल 1859 को इसी विवाद को लेकर एक निर्णय लिया था।
जिसमे निर्णय यह था की, हिंदू लोगों को पूजा करने के लिए मंदिर के बाहर का हिस्सा दिया गया और मुस्लिम लोगों को नमाज करने के लिए मंदिर के अंदर का हिस्सा दिया गया।
जिससे हिंदू और मुस्लिम लोगों में तनाव और भी बड़ता चला गया। इसलिए साल 1949 को सरकार ने इस विवाद पूर्ण तनाव को ध्यान में रखते हुए मंदिर पर बंदी लगा दी थी। मंदिर के दरवाजे को ताला लगा दिया गया था।
राम मंदिर का पुनर्निर्माण
राम मंदिर सालों से चले आ रहे संघर्षों के बाद आखिरकार फिरसे एक बार पुननिर्मित होने जा रहा है। जिसका सभी भारत देश के भारतवासियों को इंतजार था।
5 अगस्त 2020 को इसी पवित्र राम मंदिर का माननीय पंतप्रधान नरेंद्र मोदी जी के हाथों भूमि पूजन हुआ है। जिसके बाद मंदिर बनाने की शुरुवात होगी।
इसीलिए इस राम मंदिर के पुनर्निर्माण की वजह से हम सभी का सम्मान जिसे कई सालों पहले मुगलों के हाथों अपमानित किया गया था। वो सम्मान फिरसे एक बार जगने जा रहा है। भगवान श्री राम जी की जन्मभूमि फिर से एक बार पुननिर्मित होने जा रही है।
राम मंदिर के विवादित घटना की वजह से हमे ये सिख मिलती है की, हम सभी को एक दूसरे के धर्म और जात का आदर करना चाहिए। उस धर्म से जुड़े संस्कृति का सम्मान करना चाहिए। कभी भी किसी के धर्म या संस्कृति का अपमान नहीं करना चाहिए और ना ही उसे अपनी ओर से किसी भी तरह की ठेच पोहोचने दे। क्योंकि दुनिया का हर धर्म उस धर्मवासिय लोगों के लिए एक बहुत बड़ा आदर और सम्मान होता है।
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Nibandh Bharti

अयोध्या राम जन्म भूमि पर निबंध| Ram Janm Bhumi par nibandh
Ayodhya Ram Janm Bhumi par nibandh
भारत के संविधान में देश को एक धर्म निरपेक्ष राज्य अवश्य घोषित किया गया है, लेकिन आज भी भारतीय राजनीति में धर्म या संप्रदाय की विशेष भूमिका रही है। हम धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना तो कर सके हैं। लेकिन धर्म निरपेक्ष समाज का स्वप्न अभी भी अधूरा है। देश में विभिन्न धार्मिक विश्वासों और विभिन्न राजनीतिक दलों के फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के तनाव और विवाद उत्पन्न होते रहे हैं। इन्हीं तनावों और विवादों ने हमारे समाज में सांप्रदायिक वैमनस्य का विष फैलाया है जो आज भारत के अनेक भागों में विद्यमान है। ( Ayodhya Ram Janm Bhumi)

भारत के दो प्रमुख संप्रदाय हिंदू तथा मुसलमानों में एक मामूली विवाद को एक ज्वालामुखी पर्वत बना रखा था। जिसकी आग में न केवल सैकड़ों निरपराध असमय ही काल कलवित हो चुके। साथ ही संपूर्ण उत्तरी भारत में अशांति, अराजकता , जातीय विद्वेष की भावना व्याप्त थी। यह विवाद न केवल भारत के समाचार पत्रों में बल्कि विश्व के प्रमुख समाचार पत्रों में राम जन्मभूमि विवाद के रूप में विख्यात था। यह विवाद 1528 से आरंभ हुआ और अब जाकर 9 नंवबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पूर्णतः समाप्त हुआ।
ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि
राम जन्मभूमि विवाद की पृष्ठभूमि समझने के लिए हमें भारतीय इतिहास के पन्नों को उलटना होगा। वर्तमान अयोध्या नगर को रामायण तथा अनेक पौराणिक ग्रंथों में राम जन्म स्थान बताया गया है। बौद्ध धर्म के पाली ग्रंथों तथा परवर्ती ग्रंथों में भी इस नगर को राम जन्म भूमि के रूप में ही वर्णित किया गया है। पुरातात्विक प्रमाणों से भी यह सिद्ध होता है कि इस नगर में समय-समय पर अनेक मंदिरों का निर्माण होता रहा है। मुस्लिम शासन की स्थापना के बाद भारत में अनेक असहिष्णु सुल्तानों तथा मंदिरों को विध्वंस करने तथा उनके स्थान पर मस्जिद बनवाने का कार्य किया गया। लेकिन सल्तनत युग में फिरोज़ शाह तुगलक और सिकंदर लोदी के शासनकाल में अयोध्या में राम जन्म भूमि का अस्तित्व बना रहा, यह निर्विवाद सत्य है।
राम जन्म भूमि का विवाद मुगल वंश के संस्थापक बाबर के शासनकाल में अस्तित्व में आया था। बाबर की आत्मकथा तजुके बाबरी तथा मुस्लिम स्थापत्य कला के पर्सी ब्राउन सरीखे मर्मज्ञों के विवरणों से पता चलता है कि बाबर ने परंपरागत इस्लामी नीति के तहत कुछ मस्जिदों का निर्माण करवाया था। ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह भी पता चलता है कि 1528 में बाबर के सूबेदार मीर अब्दुल बकी ताशकंदी ने अयोध्या में मंदिर को गिरवाकर उसके स्थान पर मस्जिद बनवाई थी। इस तथ्य की पुष्टि से इस बात से भी होती है कि मथुरा और वाराणसी आदि स्थानों पर भी मुगल शासकों ने इसी तरह की मस्जिदों का निर्माण कराया, जो आज भी विद्यमान है। (Ayodhya Ram Janm Bhumi)
1528 से लेकर 1883 ईस्वी तक अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद सुप्तावस्था में रहा। इसके बाद अंग्रेजों की कूटनीति के फलस्वरूप इस विवाद की आग सुलगने लगी। सन् 1883 ई. में फैजाबाद के अंग्रेज कमिश्नर ने मुसलमानों के विरोध को ध्यान में रखते हुए विवादास्पद स्थल पर पुनः मंदिर बनवाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया। सन् 1885 में इस विवाद को लेकर अयोध्या में एक भीषण सांप्रदायिक संघर्ष हो गया, जिसमें 75 से अधिक लोग मारे गए। इसी वर्ष विवादास्पद स्थल के लिए मुकदमेबाजी भी शुरू हो गई।
राम जन्म स्थान के महंत अरद्युतिदास ने फैजाबाद के सहायक न्यायाधीश की अदालत में मुकदमा दायर करके इस स्थान पर मंदिर का निर्माण करने की आज्ञा माँगी। किंतु न्यायालय ने इसकी अनुमति नहीं दी और जिला न्यायाधीश ने भी महंत की अपील खारिज कर दी। इसके बाद 23 मार्च 1946 को फैजाबाद के दीवानी न्यायाधीश ने निर्णय दिया कि मस्जिद को बाबर ने बनवाया था और सुन्नी तथा शिया मुसलमान इसका प्रयोग करते रहे हैं।
1949 के बाद की स्थिति
22 दिसंबर 1949 ई. को विवादास्पद स्थल पर राम , लक्ष्मण और सीता की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित की गई। लेकिन 23 दिसंबर को ही जिलाधीश के आदेश से वहाँ ताला डाल दिया गया और दोनों संप्रदायों के लिए वहाँ प्रवेश वर्जित कर दिया गया। इसके बाद पुनः मुकदमेबाजी का दौर प्रारंभ हो गया। ( Ayodhya Ram Janm Bhumi)
1984 ई. में विवादास्पद स्थल पर मंदिर निर्माण हेतु संघर्ष करने के उद्देश्य से ‘राम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति’ का गठन किया गया। फरवरी 1986 में फैजाबाद के न्यायाधीश श्री पांडेय ने जिला प्रशासन को आदेश दिया कि विवादास्पद स्थल का ताला खोल दिया जाए। तब से इस परिसर का मुख्य द्वार खोल दिया गया। ताला खुलते ही मुसलमानों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर करके यथापूर्व स्थिति बनाए रखने की अपील की।
सितंबर 1988 में हैदराबाद में एक विश्व हिंदू सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें आयोजकों ने सरकार से विवादास्पद स्थल के संबंध में कोई बातचीत न करने तथा बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति के प्रस्तावित अयोध्या मार्च को रोकने की घोषणा की। बाद में सरकार के परामर्श पर मुसलमानों ने 12 मार्च 1989 को अयोध्या मार्च रद्द कर दिया।
1989 में विश्व हिंदू परिषद ने विवादास्पद स्थल पर 25 करोड़ रुपये की लागत से एक भव्य व विशाल मंदिर बनाने का कार्यक्रम घोषित किया। 14 अगस्त 1989 को उच्च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ ने अयोध्या में दोनों पक्षों को यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया। 29 सितंबर 1989 को विश्व हिंदू परिषद ने केंद्रीय गृहमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ एक समझौता करके अदालत के निर्णय को मानने का आश्वासन दिया तथा 19 अक्टूबर 1989 को प्रस्तावित अयोध्या मार्च रद्द कर दिया, लेकिन शिलान्यास करने का निश्चय किया। 9 नवंबर 1989 को अयोध्या में शिलान्यास शांतिपूर्वक संपन्न हो गया। इस अवसर पर केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि शिलान्यास स्थल विवादित स्थल से बाहर है।
1990 के बाद की स्थिति
23 जून 1990 को हरिद्वार में धर्माचार्यों के सम्मेलन में यह घोषणा की गई कि 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में मंदिर निर्माण(कार सेवा) किया जाएगा। अगस्त 1990 में भारतीय जनता पार्टी भी इस विवाद में कूद पड़ी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने मंदिर निर्माण हेतु जन समर्थन प्राप्त करने के लिए 25 सितंबर 1990 ईस्वी सोमनाथ से अयोध्या की रथ यात्रा आरंभ कर दी। 17 अक्टूबर 1990 ईस्वी को भारतीय जनता पार्टी ने घोषणा की कि यदि आडवाणी की रथ यात्रा रोकी गई या राम मंदिर निर्माण में अवरोध उत्पन्न किया गया तो वह राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को दिया गया अपना समर्थन वापस ले लेगी। (Ayodhya Ram Janm Bhumi)
23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर में आडवाणी की गिरफ्तारी के तुरंत बाद भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। परिणाम स्वरूप वी.पी.सिंह की सरकार का पतन हो गया। इस अवधि में केंद्र व राज्य सरकार ने अयोध्या में यथास्थिति को कायम रखने के लिए जबरदस्त तैयारियाँ की। फिर भी 30 अक्टूबर 1990 को हजारों की संख्या में कार सेवकों ने सुरक्षा बलों की भारी घेराबंदी को तोड़कर अयोध्या में प्रवेश करने का प्रयास किया। इस अवसर पर सुरक्षा कर्मियों ने काफी संयम से काम लिया।
इसी कारण कुछ कार सेवक मस्जिद तक पहुँच गए और वहाँ भगवा ध्वज फहराने में सफलता प्राप्त कर ली तथा मस्जिद को भी आंशिक क्षति पहुँचाई। कार सेवकों की इन कार्यवाहियों से क्षुब्ध होकर कुछ लोगों ने सरकार की कटु आलोचना की। फलस्वरूप 2 नवंबर 1990 को जब कार सेवकों ने पुनः वर्जित क्षेत्र में प्रवेश किया तो पुलिस ने कड़ी कार्यवाही की, लगभग ढाई घंटे तक हुई गोलाबारी में सैकड़ों लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। इसके बावजूद भी कार सेवक हतोत्साहित नहीं हुए तथा 6 दिसंबर 1990 से कारसेवकों ने अयोध्या में अपना सत्याग्रह कार्यक्रम आरंभ कर दिया।
23 अक्टूबर से 2 नवंबर 1990 तक हुई दुखद घटनाओं ने देश के अनेक राज्यों को सांप्रदायिक दंगों की आग में झोंक दिया। सांप्रदायिकता की आग में सैकड़ों लोगों को अपने जीवन की आहुति देनी पड़ी और इस सांप्रदायिक उन्माद ने 1946-47 की घटनाओं का पुनः स्मरण करा दिया।
6 दिसंबर 1992 में हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं के द्वारा विवादित ढांचे को गिरा दिया। जिससे पूरे देश में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे भड़क गए, और हजारों लोग मारे गए।
वर्ष 2002 ई. में हिंदू कार्यकर्ताओं को लेकर जा रही ट्रेन में आग लगा दी गई, जिससे लगभग 58 लोगों की मृत्यु हो गई। इस कारण से गुजरात में दंगे शुरू हो गए और इस दंगे में करीब 2 हजार लोग मारे गए।
वर्तमान पड़ाव
2010 ई. को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादास्पद स्थल को रामलला , सुन्नी वक्फ बोर्ड, और निर्मोही अखाड़ा के बीच तीन बराबर-बराबर हिस्सों में बाँटने का आदेश दिया। जिसे वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी।
2017 को सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान कर दिया। 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को मध्यस्थता के लिए भेज दिया और 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही समाप्त करने को कहा गया।
1 अगस्त 2019 को मध्यस्थता पैनल के द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। 2 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान निकालने में असफल रहा।
6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई रोजाना शुरू हुई। 16 अक्टूबर 2019 से अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी हुई और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। 2.7 एकड़ विवादित जमीन हिंदू पक्ष को दे दी गई। मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश दिया गया।
5 अगस्त 2020 को राम मंदिर का भूमि पूजन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम हेतु आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और साधु-संतों समेत 175 लोगों को न्योता दिया गया।
राम जन्म भूमि पर राम मंदिर बनाने का जो सपना सभी हिंदुओं देखा था। इस सपने को पूरा होने में 492 वर्ष लगे। इस प्रकार अब अयोध्या में राम जी का भव्य मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ जाने के बाद अब देश के सभी नागरिकों को जाति एवं धर्म का आपसी मतभेद भुलाकर सभी को मिलजुल कर रहना चाहिए। साथ ही इस समय आवश्यकता इस बात की है कि हर मूल्य पर साम्प्रदायिक सद्भाव को बनाये रखा जाए।
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Paramjit Kaur
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Ram Mandir History: 1528 से 2020 तक...राम मंदिर का पूरा इतिहास जानिए
Ram mandir ka itihas सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने 9 नवंबर 2019 को राम मंदिर (ram mandir verdict) के पक्ष में फैसला सुनाया था। हिंदू पक्ष के मुताबिक 1528 में मुगल बादशाह बाबर (babar) के सिपहसालार मीर बाकी (mir baqi) ने मंदिर गिराकर बाबरी मस्जिद (babri masjid) बनवाई थी।.
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अयोध्या पर निबंध essay on ayodhya in hindi, essay on ayodhya in hindi.
दोस्तों कैसे हैं आप सभी, आज मैं आपके लिए लाया हूं अयोध्या नगरी पर मेरे द्वारा लिखित निबंध इसमें अयोध्या नगरी के बारे में विस्तार पूर्वक बताया जाएगा चलिए आगे पढ़ते हैं

अयोध्या नगरी जो की भगवान श्री राम की जन्म भूमि है। भगवान श्रीराम ने इस अयोध्या नगरी में ही जन्म लिया और कई सालों तक यहां पर राज्य किया लेकिन इससे पहले कि हम बात करें तो अयोध्या नगरी की स्थापना सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा की गई।
कई तरह की कथाओं में यह बताया जाता है की मनु ने ब्रह्मा जी से यह आग्रह किया था कि वह उनके लिए एक नगर की स्थापना करें तब ब्रह्माजी मनु को साथ लेकर विष्णु जी के पास गए तब विष्णु जी ने अयोध्या नगरी बसाने के लिए उनके साथ में विश्वकर्मा जी एवं महा ऋषि वशिष्ठ जी को भेज दिया।
तब अयोध्या नगरी की स्थापना हुई और मनु वहां पर शासन करने लगे। मनु के कई पुत्र हुए जिनमें से इक्ष्वाकु वंश में आगे चलकर दशरथ जी का जन्म हुआ। दशरथ जी के कोई संतान नहीं थी तब महर्षि विश्वामित्र जी के कहने पर उन्होंने एक यज्ञ किया और फिर ईश्वर की कृपा से दशरथ जी की तीनों रानियों के संतान हुई, उनके चार पुत्र श्री राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न थे।
भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास में रहने के बाद अयोध्या नगरी में कई सालों तक राज्य किया, उनके राज्य में सारी प्रजा सुखी थी। भगवान श्रीराम ने प्रजा को ही अपना सबकुछ समझा और प्रजा के दुख को अपना दुख समझा। कहते हैं कि उस समय कोई भी दुखी नहीं था। भगवान श्रीराम ने सभी के दुख खुद झेल लिए थे और अंत में भगवान श्री रामचंद्र जी अपने धाम चले गए थे।
इसके अलावा भी अयोध्या पर कई राजा महाराजाओं ने शासन किया, ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल तक अयोध्या में इसी वंश के लोगों का शासक था। अयोध्या नगरी को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर भी कहां गया है, अयोध्या नगरी भारत देश की एक प्राचीन नगरी है जो कि काफी प्रसिद्ध है, इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था।
अयोध्या का विवाद
अयोध्या का कई समय से विवाद चला आ रहा था इस विवाद की वजह से भगवान श्री रामचंद्र जी का मंदिर नहीं बन पा रहा था। इस अयोध्या के विवाद की वजह से 400 साल तक यह विवाद सुप्रीम कोर्ट में रहा। 1949 में यहां असली विवाद हुआ अयोध्या में 1992 में भी विवाद हुआ था। ऐसा कहा जाता है की बाबर ने आज से कुछ सालों पहले मस्जिद बनवाई थी, इसे लेकर हिंदुओं का दावा है कि यहां पर भगवान श्री राम का मंदिर था, यह भगवान श्री रामचंद्र की जन्मभूमि है।
कई सालों तक यह विवाद चलता रहा, अयोध्या के विवादित स्थान पर 2010 में इलाहाबाद के हाईकोर्ट ने सुनवाई की थी। जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो अयोध्या विवाद पर जो इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला था उसपर रोक लगाई गई फिर यह मामला लंबा चला 2019 में अयोध्या केस विवाद को मध्यस्था के लिए भेजा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि मध्यस्था से मामला नहीं निकल सका है।
कुछ समय बाद सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई हुई और फिर अयोध्या का फैसला आ गया। अब भगवान श्री रामचंद्र की जन्मभूमि अयोध्या में राम मंदिर के लिए भूमि पूजन 5 अगस्त को हो चुकी है, यह 5 अगस्त का दिन हम सभी के लिए किसी दिवाली से कम नहीं है जल्द ही यह मंदिर बनकर तैयार होगा तो वास्तव में श्री रामचंद्र जी के मंदिर में जाकर उनके दर्शन करना हम सभी के लिए काफी महत्वपूर्ण होगा।
- अयोध्या राम मंदिर का इतिहास व् जानकारी Ayodhya ram mandir history in hindi
दोस्तों मेरे द्वारा लिखा अयोध्या पर निबंध आप अपने दोस्तों में शेयर जरूर करें और हमें सब्सक्राइब जरूर करें।
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अयोध्या राम मंदिर V/S बाबरी मस्जिद की अब तक की पूरी जानकरी और 9 नवम्बर 2019 सुप्रीमकोर्ट का फैसला
Ayodhya ram mandir babri masjid full information in hindi, अयोध्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद की जानकारी और सुप्रीमकोर्ट का फैसला.
अब तक भारत का सबसे विवादित मामला राम मंदिर का है हिन्दू धर्म की मान्यता है कि श्री राम की जन्म भूमि अयोध्या में है और उनके जन्मस्थान पर एक विशाल मंदिर था जिसे मुगल शासक बाबर ने तोड़कर वहाँ पर एक मजिद बना दी तब से लेकर अब तक यह मामला चलता आ रहा है कोर्ट हिन्दू ओर मुस्लिम एकता के कारण निर्णय नही ले पा रही है, और देखा जाय तो भारतीय इतिहास में यह विवाद 450 वर्षो से चलने वाला सबसे लम्बा विवाद है
तो चलिए अयोध्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद के बारे में पूरे विस्तार से जानते है.
अयोध्या राम मंदिर विवाद का इतिहास
Ayodhya ram mandir history in hindi.

1751 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा लेकिन फिर भी दोने धर्मों के मध्य तालमेल नही बैठ रहा था 1951 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई जिस के चलते दोनो धर्मो में हिंसा बढ़ने लगी, तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया,
सन् 1963 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया जो फैसला मुस्लिम समाज के खिलाफ लगा इस लिए मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
सन् 1979 में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की 3 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में हिन्दुओ द्वारा बाबरी मस्जिद गिराई गई, परिणामस्वरूप दोनो धर्म के लोगो मे दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं, उसके दस दिन बाद 23 दिसम्बर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गय लिब्रहान आयोग को 23 मार्च 1993 को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 16 साल लगाए,
1993 में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली। चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी था। मगर कोर्ट ने इस चुनौती को ख़ारिज कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है। जब मलिकाना हक़ का फैसला हो जाएगा तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी। हाल ही में केंद्र की और से दायर अर्जी इसी अतिरिक्त जमीन को लेकर है।
1996 में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी। इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया सन 2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
2003 में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में 900 पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा,
जांच आयोग का कार्यकाल 51 बार बढ़ाया गया।
31 मार्च 2009 को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने अर्थात् 30 जून तक के लिए बढ़ा गया।
2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
उच्चतम न्यायालय ने 7 वर्ष बाद निर्णय लिया कि 11 अगस्त 2016 से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और 60 वर्ष बाद 30 मार्च के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित कर दिया गया था.
राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद फैसला
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इसके बाद लगातार 40 दिन बहस और सुनवाई पूरी जो की 16 अक्टूबर 2019 तक चला, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट अयोध्या मन्दिर पर आखिरी फैसला 17 नवम्बर 2019 तक सुनाने का फैसला किया है जो की इस तारीखों के बीच कभी भी अयोध्या मंदिर पर सुप्रीमकोर्ट का फैसला आ सकता है. और इस केस की सुनवाई कर रहे है चीफ जस्टिस भी 17 नवम्बर के बाद अपने पद से रिटायर्ड लेंगे तो उनकी भी यही कोशिश है की कोर्ट अपना फैसला भी इस दौरान पूरी कर ले.
क्या भाजपा और RSS राममंदिर के लिए कोई पहल करेगी ?
भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में भी राममंदिर बनवाने का वायदा किया है लेकिन इसके लिए उसने संवैधानिक प्रावधानों के पालन का ही रास्ता उचित बताया है। यानी जब तक मामला सर्वोच्च अदालत में है, सरकार इसके लिए अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करेगी। लेकिन कोर्ट की तरफ से कोई आदेश आने के बाद ही वह विकल्पों की तलाश करेगी। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, भाजपा सत्ता के केंद्र में है, इसलिए संवैधानिक व्यवस्थाओं का संरक्षण करना उनका सबसे बड़ा दायित्व है। सरकार इसी दिशा में आगे बढ़ेगी। हालांकि, कोर्ट के निर्देश के मुताबिक इसके लिए सभी पक्षों के बीच एक समझौता कराने की दिशा में भी प्रयास किया जाएगा।
भाजपा और RSS को लेकर कोई भ्रम नहीं है क्योंकि वैचारिक रूप से दोनों दल एक जैसे हैं। लेकिन सरकार को यह कार्य जल्द से जल्द करना चाहिए क्योंकि रामभक्त इसके लिए वर्षों से इंतजार करते आ रहे हैं।
तो ऐसे में यह देखना रहेगा की हिंदुस्तान के लोग अदालत के इस फैसले को कैसे स्वीकार करते है जो की अपने आपसी भाईचारा और साम्प्रदायिक सौहार्द की मिशाल भी बन सकता है. जो गंगा जमुनी तहजीब संस्कृति की साक्षी भी बनेगा.
तो लम्बे वक्त के इन्तजार के बाद 9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनाया जायेगा जो की अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना होने जा रही है
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Ayodhya Ram Mandir History: जानें क्या है अयोध्या नगरी का इतिहास और इससे जुड़ी कुछ खास बातें
रामायण के मुताबिक अयोध्या (ayodhya ram mandir) की स्थापना मनु ने की थी. अयोध्या हिंदुओ के 7 पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है. जिसमें अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची , अवंतिका और द्वारका शामिल है..
Updated: August 5, 2020 10:25 AM IST
By India.com Hindi News Desk | Edited by Deepika Negi

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अयोध्या का इतिहास
पारंपरिक इतिहास में, अयोध्या (Ayodhya Ram Mandir) कोसल राज्य की प्रारंभिक राजधानी थी. गौतमबुद्ध के समय कोसल के दो भाग हो गए थे- उत्तर कोसल और दक्षिण कोसल जिनके बीच में सरयू नदी बहती थी. वेदों में अयोध्या को ईश्वर की नगरी बताया गया है, वहीं इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है. अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है- अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या. यह नगरी सरयू के तट पर बारह योजन लम्बाई और तीन योजन चौड़ाई में बसी थी. कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा. अयोध्या मूल रूप से हिंदू मंदिरो का शहर है. जैन मत के अनुसार यहां चौबीस तीर्थंकरों में से पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था. क्रम से पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ जी, दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी, चौथे तीर्थंकर अभिनंदननाथ जी, पांचवे तीर्थंकर सुमतिनाथ जी और चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ जी. इसके अलावा जैन और वैदिक दोनों मतो के अनुसार भगवान रामचन्द्र जी का जन्म भी इसी भूमि पर हुआ.
अयोध्या से जुड़ी कुछ खास बातें
– यह स्थान श्रीराम का जन्म स्थान (Ram Janmabhoomi) है. राम एक ऐतिहासिक महापुरुष थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं. शोधानुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था.
– भगवान श्रीराम के बाद बाद लव ने श्रावस्ती बसाई और इसका स्वतंत्र उल्लेख अगले 800 वर्षों तक मिलता है. कहते हैं कि भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया था. इसके बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व बरकरार रहा.
– महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी गई लेकिन उस दौर में भी श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व सुरक्षित था और लगभग 14वीं सदी तक बरकरार रहा.
– तथ्यों के मुताबिक, बाबर के आदेश पर सन् 1527-28 में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बने भव्य राम मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद का निर्माण किया गया. कालांतर में बाबरी के नाम पर ही इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा.
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Published Date: July 28, 2020 1:05 PM IST
Updated Date: August 5, 2020 10:25 AM IST

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RAM, short for random access memory, is used by computers to store data that is being used currently or was recently used. Accessing data stored in RAM is much quicker than directly accessing data stored on the hard drive, allowing a comput...
The amount of RAM your computer has can affect the speed and performance of the computer. RAM stands for random access memory. When a computer runs a program, the microprocessor loads the executable file from the program into the computer’s...
RAM is the term used to describe the memory system of computers. The amount of RAM, or random access memory, that computers contain varies widely among operating systems. RAM disks or drives are external devices that can be installed on man...
इसलिए जहा भगवान श्री राम का जन्म हुआ था, वहा उनके जन्मभूमि पर मंदिर की स्थापना
1528 से लेकर 1883 ईस्वी तक अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद सुप्तावस्था में रहा। इसके
मंदिर के मुख्य वास्तुकार चंद्रकांत
हिन्दुओं की मान्यता है कि श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उनके जन्मस्थान पर एक
अयोध्या को भगवान श्रीराम के पूर्वज विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था, तभी
फैजाबाद। इन दिनों अयोध्या में राम जन्मभूमि निर्माण का मुद्दा फिर से गरमा गया है।
अयोध्या: राम मंदिर का निर्माण कार्य जारी, भरी जा रही नींव · कनक भवन का रहस्य ||
Ram Mandir ka itihas सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने 9 नवंबर 2019 को राम मंदिर (Ram
अयोध्या नगरी जो की भगवान श्री राम की जन्म भूमि है। भगवान श्रीराम ने इस अयोध्या
अब तक भारत का सबसे विवादित मामला राम मंदिर का है हिन्दू धर्म की मान्यता है कि
रामायण के मुताबिक अयोध्या (Ayodhya Ram Mandir) की स्थापना मनु ने की थी. अयोध्या हिंदुओ के